हिंदी साहित्य के पिछले 60 साल के इतिहास को देखें तो हिंदी के सामाजिक भूगोल के
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मैं कहता हूं सामाजिक भूगोल फैला है तब यह भी स्वीकार करना होगा कि हमारी ऐतिहासिक
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हर भाषा का अपना एक सामाजिक भूगोल होता है, जो उसके भाषाई परिवेश से जुड़ा होता है।
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सामाजिक भूगोल की ये पंक्तियां किसी किताब का पढा नहीं बल्कि आपके खुद का जिया हुआ मालूम पड़ता है।
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जब मैं कहता हूं सामाजिक भूगोल फैला है तब यह भी स्वीकार करना होगा कि हमारी ऐतिहासिक स्मृति सिकुड़ी है.
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अगर आप हिंदी साहित्य के पिछले 60 साल के इतिहास को देखें तो हिंदी के सामाजिक भूगोल के विस्तार की भी एक बड़ी घटना है.
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सुख के सीमित सामाजिक भूगोल की निर्मम, रोज़ की तक़लीफ़देह सच्चाई को, थोड़ी देर को ही सही, झुठलाकर, समूचे समाज के सुख के नगाड़े की तरह पीटती रहे, कि अख़बार और टीवी के पर्दों पर बड़ी उदासियां छुपी रहें, छिप जायें.